QR Code कैसे काम करता है, कभी सोचा है? क्या रिस्की भी हो सकता है इनका इस्तेमाल? आज सुलझा लें ये पहेली
QR code जब आपके डेली यूज में आ चुके हैं तो क्या आपने कभी सोचा है कि एग्जैक्टली काम कैसे करते हैं. क्या इनके इस्तेमाल में खतरा भी होता है? आइए आज क्यूआर कोड के बारे में जानते हैं दिलचस्प बातें.
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QR Code या Quick Response code का इस्तेमाल हम अकसर ऑनलाइन पेमेंट वगैरह के वक्त करते हैं, लेकिन इनके इस्तेमाल का दायरा लगातार बढ़ रहा है. पिछले दो सालों में आपको कई जगहों पर क्यूआर कोड का दखल दिखा होगा. लेकिन इन्हें लेकर इसी हफ्ते ऐसे दो डेवलपमेंट आए हैं जो इसकी जरूरत को हाइलाइट करते हैं. पहला, अब घरेलू एलपीजी सिलेंडरों पर क्यूआर कोड (LPG Cylinders with QR Code) लगाने की बात हो रही है. इससे गैस सेफ्टी, गैस चोरी, सिलेंडर ट्रैकिंग जैसी फैसिलिटीज़ मिलेंगी. इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि अब दवाओं के पैकेट पर भी क्यूआर कोड (QR Code on Medicines Packaging) छपेगा, ताकि नकली दवाओं पर रोक लगाई जा सके. अब जब क्यूआर कोड पर इतना भरोसा जताया जा रहा है, और ये आपके डेली यूज में आ चुके हैं तो क्या आपने कभी सोचा है कि एग्जैक्टली काम कैसे करते हैं. क्या इनके इस्तेमाल में खतरा भी होता है? आइए आज क्यूआर कोड के बारे में जानते हैं दिलचस्प बातें.
QR Code क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं?
आपने बाजार में प्रॉडक्ट्स पर बारकोड लगे हुए देखे होंगे. एक तरह से कह सकते हैं कि बारकोड और क्यूआर कोड आपस में भाई-भाई हैं. बेसिकली क्यूआर कोड डिजिटल इन्फॉर्मेशन स्टोर करने वाले बारकोड होते हैं, जिन्हें स्कैन करके वो इन्फॉर्मेशन देखी जा सकती है. क्यूआर कोड में न्यूमेरिक और अल्फान्यूमेरिक कैरेक्टर्स, बाइट्स में जानकारी स्टोर होती है. आप इसे जो जानकारी फीड करते हैं, वो टू-डी स्क्वैयर में फॉर्म हो जाता है और जब आप इसे ऑप्टिकल स्कैनर से गुजारते हैं तो वो स्कैनर इसके छोटे-छोटे लाइंस, पॉइंट्स, स्क्वैयर्स को डीकोड करके रीडेबल डेटा में बदल देता है.
यानी कि क्यूआर कोड एक तरीके से लाइंस, स्क्वैयर्स और पॉइंट्स में बदलकर स्टोर हो जाने वाला डिजिटल डेटा होता है, जिसे वापस कन्वर्ट करके पढ़ा जा सकता है. क्यूआर कोड में आपको जो ब्लैक लाइंस दिखाई देती हैं उन्हें डेटा मॉड्यूल कहते हैं.
क्यूआर कोड के कई हिस्से होते हैं
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क्यूआर कोड एक सफेद बैकग्राउंड काले-काले निशान नहीं होता है. इसके अपने कई पार्ट्स होते हैं. अगर आप ध्यान से देखें तो आपको इसके तीन साइड में वर्ग बने होते हैं और बाकी हिस्से में काले-काले से बिंदू मिलकर अलग-अलग आकार बनाते हैं. क्यूआर कोड में डेटा मॉड्यूल, पोजीशन मार्कर्स, क्वायट जोन, लोगो जैसी कई चीजें छुपी होती हैं. क्यूआर कोड में हर डॉट बाइनरी कोड में 1 और हर खाली जगह 0 को दिखाती है. ये पैटर्न ही मिलकर नंबर, अक्षर या URL की एन्कोडिंग करता है.
क्यूआर कोड के किनारे खाली जगह होती है, जिससे स्कैनर यह देख पाता है कि कोड कहां से शुरू और कहां पर खत्म हो रहा है. पोजीशन मार्कर्स क्यूआर कोड के ऊपरी दोनों कोनों में निचले बायें कोने में बने वर्ग होते हैं, ये स्मार्टफोन को यह बताने के लिए होते हैं कि स्कैनर कहां रखना है.
क्या क्यूआर कोड रिस्की हो सकते हैं?
यूं तो क्यूआर कोड का इस्तेमाल रिस्की नहीं है. ये बस डेटा स्टोर करने का टूल है, लेकिन इसका रिस्क वहां देखा जा सकता है जब आपका डेटा चुराने के लिए इसका इस्तेमाल फिशिंग के लिए हो रहा हो. हैकर्स आपको मैलवेयर वाले लिंक्स स्टोर करके कोड भेज सकते हैं. आपने अगर इन्हें स्कैन किया और लिंक पर क्लिक किया तो आपको डेटा चोरी हो सकता है, आपके डिवाइस में वायरस आ सकता है. एक फिशिंग यूआरएल पर क्लिक करने से आप कई तरह के फर्जीवाड़े में फंस सकते हैं, ऐसे में यहां क्यूआर कोड धोखाधड़ी का साधन बन सकता है, लेकिन आप सावधान रहें और सेफ जगहों से ही क्यूआर कोड स्कैन करें तो आपको इसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
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04:44 PM IST